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हे परमेश्वर...

  मानव पे आयी है विपदा हे परमेश्वर अरज सुनो । हो अभेद्य जो इस विपदा से ऐसा कोई कवच बुनों ।। बूढ़े बालक नर नारी वो हर जन पर अभिशाप बना । बंदी बनी है मानवता और हर घर कारावास बना ।। है जग पालक है सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो । तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो ।।   एक अप्रकट अनजाने शत्रु से कैसे हम संग्राम करें । लड़ते मरते कितने और शबो से हम शमशान भरें।।   भय की ज्वाला जलती मन में कब तुम इसे बुझाओगे । तपती आंखे देख रही है तुम रक्षक बन कब आओगे ।।   हे - अनंत , हे - अनादि अब तो इस संकट का अंत करो । निर्भय हों हम , लो शरण हमे , कोई दिव्य प्रबंध करो ।।   है जग पालक है सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो । तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो ।   निज निज वो विस्तार करे उसका अंत समझ न आता है । मनुज मनुज से भय खाये यही वो शत्रु चाहता है ।।   इससे पहले और अधर्म बड़े , प्रभु धर्म पताका फेहराओ । इस वहती दूषित काली आंधी को तुम ही पूर्णता ठहराओ ।।   व्याकुल भूखे बेघर लोगों को अब निष्कंटक मार्ग मिले । निकले प्रलयंकर घोर अंधेरे से हमे नया प्रकाश मिले ।।   हे दयानिधि हे सुख सागर इस कुंठित मन को शां