BHAGWAT GEETA PART-1


 

                                     “अर्जुन
हे केशव ये सब तो अपने ही संबंधी है में इनसे न लड़ पाऊँगा।

जिनके चरणों में शीश रखा, जिन्हें गले लगाया कैसे उनपे वाण चलाऊंगा ।


ये तात, गुरु, मामा, अनुज , जेष्ठ, हे केशव क्या में इनका वध कर पाऊँगा ।

शिथिल हुआ रोम-रोम गाण्डीव नहीं उठता, गोविंद में युद्ध नही कर पाऊँगा ।

 

अपने ही कुल का कैसे नाश करूँ।

कुल नाशी होने का कैसे पाप करूँ ।

जब सब सनातन कुल धर्म नष्ट हो जाएगा ।

ऐसा पापी युगों तक नरक वास को पाएगा ।

 

मैं निहत्था रण में मारा जाऊं किंतु ये पाप नहीं कर पाउँगा।

कैसे कुल नाशी हो जाऊं ,हे गोविंद मैं युद्ध नही कर पाउँगा।


                                   कृष्ण”

धर्म आस लगाए देख  रहा तो मोह शोक से लिपट रहा।

इन दुर्बल कायरता के भाव में तेरा पुरुषार्थ सिमट रहा  


नपुंसकता त्याग पार्थ, यश कीर्ति नष्ट हो जायेगा।

हे पुरुष श्रेष्ठ इस शोक से स्वर्ग नही तू पायेगा।

 

त्याग हृदय की दुर्बलता , मत धर्म मार्ग अवरुद्ध करो ।

शोक त्याग गाण्डीव उठा ,  हे कौन्तेय  युद्ध करो ।

                            
                                   “अर्जुन

कैसे पितामह भीष्म, गुरु द्रोण को भेदूँगा इन वाणों से।

जिन्हें पूजता आया हूँ ,  और जो  प्रिये मुझे इन प्राणों से ।


गुरुजनों के रक्त में लिपटी रोटी न खा पाऊँगा ।

भरत वंश के लहू से महके, न ऐसा महल बनाऊँगा।


इन गुरुजनों को मार कर, क्या में मोक्ष को पाऊँगा ।

मार्ग दिखाओ हे केशव, मैं युद्ध नहीं कर पाऊंगा ।
                                                                      - नरेन्द्र लोधी

 


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