Maharani Avanti Bai
दोहराता हूँ आज पुनः ,कुछ वीरो के उन किस्शो को !
जिन्हें उकेरा नही गया ,उन इतिहासों के हिस्सों को !!
ग्राम मन-खेड़ी, जिला सेवनी , राजा जुझार सिंह की बेटी थी !
नाम अबंती बाई जिसका , बेटों से बढ़ कर बेटी थी !!
विवाह हुआ रामगढ के राजा लक्ष्मण सिंह के बेटे थे !
समय रहा सन ५७ का दुश्मन घाट लगाये बेठे थे !!
यूँ समय जरा ही बीत सका, फिर सन्नाटा सा छाया था !
रिक्त हुए सिंघासन पर , शत्रु गिद्धों सा मढ़राया था !!
डलहोजी ने हड़प नीति से ,फिर अपनी जात दिखा डाली !
रानी ने भी शेख मोहम्मद और अब्दुला को बहार की राह दिखा डाली !!
रानी के इस निर्णय से, दुश्मन के मनसूबे टूट गये !
एक नारी के साहस से , गोरों के छक्के छुट गये !!
शंखनाद हो चूका , अब संग्राम समर में जाना था !
रामगढ़ की सेना को अभी और सेन्य बल पाना था !!
रखा सम्मेलन , राजो – परगनादारों को बुलबाया था !
दो चूड़ियाँ पत्र में रख कर संदेसा भिजबाया था !!
लिखा पत्र में पहनो चूड़ी या युद्ध करो !
कसम तुम्हे मात्-भूमि की कुछ तो अंतर मन को शुद्ध करो !!
चले हजारो साथ में सैनिक , बजे नगाड़े ,भगवा ध्वज नभ को चूम रहे !
सजा रण स्वतंत्र भारत के स्वप्न का , हर हाथ में भाले झूम रहे !!
हर हर महादेव के जयकारों से, गूँज उठा रण चहुँ-ओर !
टूट पड़ी वह शत्रु पे सिंह सी , छाई बन कर म्रत्यु घटा घनघोर !!
वह करती नर संघार जेसे मा काली काट रही हो शीश रक्तबीज के !
क्या ही पैदल, क्या ही घोड़े, जेसे रानी करती हो अभिषेक मात्रभूमि का शत्रु का रक्त सींच के !!
हिला दिए दुश्मन के चूल्हे, गोरों के दिल में एक डर जग गया !
डलहोजी के होश उड़ गये , वाडिंग्टन सिवनी भाग गया !!
पर बन अंधकार सा फिर लोटा, शत्रु लेकर सैन्य अपार !
चला, तोप और बंदूके ले, करता जता बार पे बार !!
जर –जर कर दिवार किले की , गिरी तोप के गोलों से !
पर अभिमान कहा मरने वाला था इन ठन्डे आग के शोलों से!!
जब तक प्राणों में स्वांस रही, वह चली समर में आंधी सी !
नहा रक्त में लाल हुई,तलबार वह जो चमक रही थी चांदी सी!!
घेरा दुश्मन ने रानी को , आत्मा समर्पण चाहता था !
एक आंधी को जंजीरों के वश में करना चाहता था !!
भोंक ली तलवार सीने में , रानी वीरगति को प्राप्त हुई !
छोड़ देह ,वह आत्मा भारत के ह्रदय में व्याप्त हुई !!.......
https://youtu.be/agoONjLRlnw
जिन्हें उकेरा नही गया ,उन इतिहासों के हिस्सों को !!
ये गाथा है एक रानी की !उसके आज़ादी के सपने की ,
और उसकी क़ुरबानी की ! !
और उसकी क़ुरबानी की ! !
ग्राम मन-खेड़ी, जिला सेवनी , राजा जुझार सिंह की बेटी थी !
नाम अबंती बाई जिसका , बेटों से बढ़ कर बेटी थी !!
विवाह हुआ रामगढ के राजा लक्ष्मण सिंह के बेटे थे !
समय रहा सन ५७ का दुश्मन घाट लगाये बेठे थे !!
यूँ समय जरा ही बीत सका, फिर सन्नाटा सा छाया था !
रिक्त हुए सिंघासन पर , शत्रु गिद्धों सा मढ़राया था !!
डलहोजी ने हड़प नीति से ,फिर अपनी जात दिखा डाली !
रानी ने भी शेख मोहम्मद और अब्दुला को बहार की राह दिखा डाली !!
रानी के इस निर्णय से, दुश्मन के मनसूबे टूट गये !
एक नारी के साहस से , गोरों के छक्के छुट गये !!
शंखनाद हो चूका , अब संग्राम समर में जाना था !
रामगढ़ की सेना को अभी और सेन्य बल पाना था !!
रखा सम्मेलन , राजो – परगनादारों को बुलबाया था !
दो चूड़ियाँ पत्र में रख कर संदेसा भिजबाया था !!
लिखा पत्र में पहनो चूड़ी या युद्ध करो !
कसम तुम्हे मात्-भूमि की कुछ तो अंतर मन को शुद्ध करो !!
चले हजारो साथ में सैनिक , बजे नगाड़े ,भगवा ध्वज नभ को चूम रहे !
सजा रण स्वतंत्र भारत के स्वप्न का , हर हाथ में भाले झूम रहे !!
हर हर महादेव के जयकारों से, गूँज उठा रण चहुँ-ओर !
टूट पड़ी वह शत्रु पे सिंह सी , छाई बन कर म्रत्यु घटा घनघोर !!
वह करती नर संघार जेसे मा काली काट रही हो शीश रक्तबीज के !
क्या ही पैदल, क्या ही घोड़े, जेसे रानी करती हो अभिषेक मात्रभूमि का शत्रु का रक्त सींच के !!
हिला दिए दुश्मन के चूल्हे, गोरों के दिल में एक डर जग गया !
डलहोजी के होश उड़ गये , वाडिंग्टन सिवनी भाग गया !!
पर बन अंधकार सा फिर लोटा, शत्रु लेकर सैन्य अपार !
चला, तोप और बंदूके ले, करता जता बार पे बार !!
जर –जर कर दिवार किले की , गिरी तोप के गोलों से !
पर अभिमान कहा मरने वाला था इन ठन्डे आग के शोलों से!!
जब तक प्राणों में स्वांस रही, वह चली समर में आंधी सी !
नहा रक्त में लाल हुई,तलबार वह जो चमक रही थी चांदी सी!!
घेरा दुश्मन ने रानी को , आत्मा समर्पण चाहता था !
एक आंधी को जंजीरों के वश में करना चाहता था !!
भोंक ली तलवार सीने में , रानी वीरगति को प्राप्त हुई !
छोड़ देह ,वह आत्मा भारत के ह्रदय में व्याप्त हुई !!.......
-Narendra Singh Lodhi
https://youtu.be/agoONjLRlnw
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