ME MERE DOST AUR ZINDGI...

एक तनहा सा लड़का तन्हाई थी बसेरा !

न कटती थी रातें , न होता था सबेरा !


फिर एक दिन वो सब छोड़ दूर आया !

जैसे जिंदगी में उसके कोई  नूर आया !

नए लोग थे सब , नए थे नज़ारे !

अनजान थे सब , नहीं थे हमारे !

पर जिंदगी को जीते जब लोगो को उसने देखा !

पलट कर नहीं फिर उसने कल को देखा !

न गम की थी लकीरे ,न तनहाइयों के पहरे !

हर दिल में थी ख़ुशी और हसते हुए थे चेहरे !

उसने भी जिंदगी अब मौज में बदल दी !

हर दबी हुई तमन्ना शौक में बदल दी !

जिंदगी को उसने नई राह अब बता दी !

हर तनहाई को उसने शहनाई से सजा दी !

जो अनजान बन मिले थे , वो अपने बन गए है !

जो कल तक थी कल्पनायें  वो सपने बन गए है !

आज जिंदगी को जीना सीखा है मेने इनसे !

हर गम को भुला देना सीखा है मेने इनसे !

बीते हुए लम्हात में भुला चूका हू !

नये ज़ज्बात अपने अन्दर जगा चूका हूँ !

अब चुनली है  मेने अपनी मंजिल , राह तय कर रहा हूँ !

कुछ बाकि है सफ़र मेरा , कुछ तय कर चूका हूँ !


-नरेन्द्र  लोधी

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