DANGAA

आज लड़े इन्सा के दो बेटे
एक हाथ जान से धो बैठा !

निर्दयी ने ली जान भाई की
कैसा क्रत्य भयानक कर बैठा !

देख क्रत्य ये निर्द्यिता का
चुप कोई भी फिर न बैठा !

फूंक दिए घर उजड़े बाखर
हर कोई दंगा कर बैठा !

छोड़ सहजता और मानवता
इंसा को फिर मजहब से बांट दिया !

तार-तार हुई मानवता
इन्सा को इन्सा ने काट दिया ! 
                                   -NARENDRA LODHI

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