हे परमेश्वर

मानव पे आयी है विपदा हे परमेश्वर अरज सुनो ।
हो अभेद्य जो इस विपदा से ऐसा कोई कवच बुनों ।।

बूढ़े बालक नर नारी वो हर जन पर अभिशाप बना ।
बंदी बनी है मानवता और हर घर कारावास बना ।।

हे जग पालक हे सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो ।
तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो ।।

एक अप्रकट अनजाने शत्रु से कैसे हम संग्राम करें ।
लड़ते मरते कितने और शबो से हम शमशान भरें।।

भय की ज्वाला जलती मन में कब तुम इसे बुझाओगे ।
तपती आंखे देख रही है तुम रक्षक बन कब आओगे ।।

हे-अनंत, हे-अनादि अब तो इस संकट का अंत करो ।
निर्भय हों हम, लो शरण हमे, कोई दिव्य प्रबंध करो ।।

हे जग पालक हे सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो ।
तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो ।

निज निज वो विस्तार करे उसका अंत समझ न आता है ।
मनुज मनुज से भय खाये यही वो शत्रु चाहता है ।।

इससे पहले और अधर्म बड़े , प्रभु धर्म पताका फेहराओ ।
इस वहती दूषित काली आंधी को तुम ही पूर्णता ठहराओ ।।

व्याकुल भूखे बेघर लोगों को अब निष्कंटक मार्ग मिले ।
निकलें प्रलयंकर घोर अंधेरे से हमे नया प्रकाश मिले ।।

हे दयानिधि हे सुख सागर इस कुंठित मन को शांत करो ।
विकल व्यग्र के पाप हरो प्रभु दूर मनुज के भ्रांत करो ।।

हे जग पालक हे सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो
तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो ।।
- नरेन्द्र लोधी

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