Kya Tumhe Maloom Hai
क्या तुम्हें मालूम है हालात मेरे दिल के ,
तुम्हे पता है तुम्हारे जाने के बाद का आलम ।
तुमने सायद देखा नही होगा मेरा उदास चेहरा,
तुम्हे वादा याद तो होगा, अब भी वो उम्मीद है कायम ।
कहा था तुमने कुछ नही बदलेगा,
कुछ रस्में है बस निभानी है ।
तुम जैसे हो वैसे रहना अपनी हर एक बात कहते रहना।,
कुछ फॉर्मेलिटीज है लाइफ में पूरी करने दे , कोनसी ज़िंदगी ऐंसे बितानी है ।
क्या तुमने ये सब झूठ कहा ,
और सच है तो तुम कब लौटोगे ।
तीन साल दो महीने पांच दिन गुजर गए ,
अब बोलो न तुम कब लौटोगे ।
क्या तुमने महसूस किया अपनी बढ़ती दूरी को ,
फोन उठा कर देखो बात बहुत कम होती है ।
तुमने सायद ध्यान दिया हो ,
तुम जब गुड नाईट कहदो अब ऐसी रात बहुत कम होती है ।
तुमसे जब मिलने की ख्वाहिश की ,
तुमने बिन सोचे इनकार किया ।
नया बहाना हर बार रहा ,
शर्तें सामने रखदी तुमने जब मेने कुछ इजहार किया ।
तुम इतने गहरे क्यों उत्तर गए उन किरदारों में ,
तुम तो बस यूं ही अभिनय करना चाहते थे ।
तुम्हे क्या हुआ ,कुछ भूल गए ,
तुम साथ मेरे जीना मरना चाहते थे ।
पूछो खुदसे से एक बार जरा ,
क्या अब भी याद तुम्हे में आता हूँ ।
अब भी परवाह करती हो ?
कब सोया और कब खाता हूं ।
आखिरी तुमने कब कोशिस की ,
मन मेरा तुम पढ़ पाओ ?
कब ऐसा वो बीता ,
जब तुम हक़ में मेरे लड़ पाओ ।
-नरेन्द्र लोधी
तुम्हे पता है तुम्हारे जाने के बाद का आलम ।
तुमने सायद देखा नही होगा मेरा उदास चेहरा,
तुम्हे वादा याद तो होगा, अब भी वो उम्मीद है कायम ।
कहा था तुमने कुछ नही बदलेगा,
कुछ रस्में है बस निभानी है ।
तुम जैसे हो वैसे रहना अपनी हर एक बात कहते रहना।,
कुछ फॉर्मेलिटीज है लाइफ में पूरी करने दे , कोनसी ज़िंदगी ऐंसे बितानी है ।
क्या तुमने ये सब झूठ कहा ,
और सच है तो तुम कब लौटोगे ।
तीन साल दो महीने पांच दिन गुजर गए ,
अब बोलो न तुम कब लौटोगे ।
क्या तुमने महसूस किया अपनी बढ़ती दूरी को ,
फोन उठा कर देखो बात बहुत कम होती है ।
तुमने सायद ध्यान दिया हो ,
तुम जब गुड नाईट कहदो अब ऐसी रात बहुत कम होती है ।
तुमसे जब मिलने की ख्वाहिश की ,
तुमने बिन सोचे इनकार किया ।
नया बहाना हर बार रहा ,
शर्तें सामने रखदी तुमने जब मेने कुछ इजहार किया ।
तुम इतने गहरे क्यों उत्तर गए उन किरदारों में ,
तुम तो बस यूं ही अभिनय करना चाहते थे ।
तुम्हे क्या हुआ ,कुछ भूल गए ,
तुम साथ मेरे जीना मरना चाहते थे ।
पूछो खुदसे से एक बार जरा ,
क्या अब भी याद तुम्हे में आता हूँ ।
अब भी परवाह करती हो ?
कब सोया और कब खाता हूं ।
आखिरी तुमने कब कोशिस की ,
मन मेरा तुम पढ़ पाओ ?
कब ऐसा वो बीता ,
जब तुम हक़ में मेरे लड़ पाओ ।
-नरेन्द्र लोधी
Comments
Post a Comment