Kaal Chakra
काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । जो पाप और अधर्म मानव से धरा पर बढ़ गए। ये उसी का है सबक ताले धरा पर पड़ गए । मानो मनुष्य की गति को आज रोके बो खड़ा है। हर तरफ देखो तबाही ,कुदरत का विनाशक रो पड़ा है। न पवन दूषित है उतनी , न धुआं अब घोर है । न सड़कों पर विष उगलती गाड़ियां , न जहाजों का गगन में शोर है। काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । शीतल हुई छाती धरा की अब कुछ साफ उसकी सांस है। घाव थोड़े से भरे अब, कुछ लौटी उसकी आस है । देखो हटे बादल धुँए के शहरों से तारे दिखाई देते है अब जो न आते थे किनारे ,वे जीव सारे दिखाई देते है अब । खो गयी थी पक्षियों की जो चहक आधुनिक इस दौर में अब सुनाई देती है , ताजगी के संग रोज नई भोर में काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । - नरेन्द्र लोधी