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Showing posts from July, 2020

Kaal Chakra

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काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । जो पाप और अधर्म मानव से धरा पर बढ़ गए। ये उसी का है सबक  ताले धरा पर पड़ गए । मानो मनुष्य की गति को आज रोके बो खड़ा है। हर तरफ देखो तबाही ,कुदरत का विनाशक रो पड़ा है। न पवन दूषित है उतनी , न धुआं अब घोर है । न सड़कों पर विष  उगलती गाड़ियां ,  न जहाजों का गगन में शोर है। काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । शीतल हुई छाती धरा की अब कुछ साफ उसकी सांस है। घाव थोड़े से भरे अब, कुछ लौटी उसकी आस है । देखो हटे बादल धुँए के शहरों से तारे दिखाई देते है अब  जो न आते थे किनारे ,वे जीव सारे दिखाई देते है अब । खो गयी थी पक्षियों की जो चहक आधुनिक इस दौर में अब सुनाई देती है , ताजगी के संग रोज नई भोर में  काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है ।                                                  - नरेन्द्र लोधी

Sanskriti

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क्या खत्म ही हो जायेगा वो ,  दौड़ता था इन रगों में खून जो , क्या किसी को परवाह नही अब,  था मिट्टी में अपनी मिलता सुकून जो । खो गया है पूर्व देखो पश्चिमो के भेष में । अब नही बस्ता है भारत देखो मेरे देश मे । वे संताने भरत की जैसे सब मर ही गयी । जो अड़ सकेगा एक वचन पे मुट्ठी भर ही शेष है ।                                                                 - नरेंद्र  लोधी 

ZINDGI...

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हर शख्स की एक अलग कहानी है ! कहीं  बचपन , कहीं बुढ़ापा और कहीं ये जवानी है ! क्या खूब है इस बदलती हुई दुनिया की तस्वीर , और क्या खूब इस वक़्त की रवानी है ! बदलती रही रंगत यहाँ हमारी , कैसे  गुजरा है  वक़्त और बदलती हुई कहानी है ! कोई हुआ दीवाना तो कोई यहाँ दीवानी है ! जिंदगी न जाने कैसे यहाँ बितानी है ! मेने देखी है जिंदगी भी किसी के नाम करके , पर वो  भी लगती झूठी कोई कहानी है ! न रुका कोई हम में सब वहता हुआ सा पानी है ! हम रहे किनारों की तरह और सब लगे मौज की रवानी है ! सोचा है आज मेने बीता है बचपन गोद में जिसकी , उसी के नाम ये मेरी ये जवानी है !                                                            -नरेन्द्र लोधी

Mai khud se bahar aya hun

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टीस उठी है दिल मे एक और उसने मुझे जगाया है । में कुछ भी न कर पाया हूँ अभी उसने मुझे बताया है । तड़प उठा हूँ खुद की ही करतूतों से में कहा मुझे ले आया हूँ । हिसाब लगाने बैठा हूँ पहले क्या जोडूं कितना कुछ खो आया हूँ । समय बहुत खो बैठा हूँ , उनकी उम्मीद खो आया हूँ । दिल टूट चुका है ,किसी की यादों में रो आया हूँ । यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ । पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ । पापा ने कैसे छोटी सी खेती से मेरी लाखों की फीस भरी। जेवर गिरबी रख दिये माँ ने जब मांगी मेने कोई चीज बड़ी । पता नहीं अब भी वो माँ के जेवर उठ पाए या डूब गए । पापा की उम्मीदें जिन्दा है या अरमान वो सारे टूट गए । में बस डीग्री लेकर लौटा हूँ कोई जॉब नहीं में पाया हूँ । में बुरा नही एवरेज रहा, पर अब्बल तो न आया हूँ । यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ । पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ । B Tech किया M Tech किया , GATE दिया लाखों यूँ बर्बाद किया । बच निकला हर बुरी आदत से, पर दिल के matter ने बर्बाद किया ।

Ek Tarfa Mohabbat Ki Bat Hai....

न उसकी शिकायत कर रहा हूँ में ! न खुद की बकालत कर रहा हूँ में ! करीब मुझे वो आने नही देंगे , पर फिर भी उसकी हिफाजत कर रहा हूँ में ! उसकी हर राह की सजावट कर रहा हूँ ! अपने गम को ढक कर ख़ुशी की दिखावट कर रहा हूँ में ! साथ हूँ में उसके हर पल , कभी सोचे न वो की उसकी खिलाफत कर रहा हूँ में ! कैसे मोहब्बत में उसकी जल रहा हूँ में ! धड़कने रुकी हैं पर चल रहा हूँ में ! न छूटे हंसी लवों से न अश्क वहा पाऊँ   एक एक  पल मर रहा हूँ में !

Veerta

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हम भारत माँ के वीर सिपाही , निडर निरंतर रण में डटे रहें। कंधों पे शीश भले न हो , पर कदम धरा पे जमे रहें। रुधिर हृदय से बहता हो ,   वस्त्र लहू में सने रहें। पर शस्त्र हाथ से न छूटे , शत्रु रण में डरे रहें। और जब तक शत्रु अंतिम न मिट जाए । प्राण देह में बने रहें शीश कटा जब देखेगा , सीमा पार तिरंगा झूम उठा। तब तक काल तुम्हें भी है रुकना , यम प्रतीक्षा में खड़े रहें।                                                                  -नरेन्द्र लोधी