Veerta
कंधों पे शीश भले न हो ,पर कदम धरा पे जमे रहें।
रुधिर हृदय से बहता हो, वस्त्र लहू में सने रहें।
पर शस्त्र हाथ से न छूटे, शत्रु रण में डरे रहें।
और जब तक शत्रु अंतिम न मिट जाए ।
प्राण देह में बने रहें
शीश कटा जब देखेगा, सीमा पार तिरंगा झूम उठा।
तब तक काल तुम्हें भी है रुकना,
यम प्रतीक्षा में खड़े रहें।
-नरेन्द्र लोधी
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