Sanskriti
क्या खत्म ही हो जायेगा वो ,
क्या किसी को परवाह नही अब,
खो गया है पूर्व देखो पश्चिमो के भेष में ।
अब नही बस्ता है भारत देखो मेरे देश मे ।
वे संताने भरत की जैसे सब मर ही गयी ।
जो अड़ सकेगा एक वचन पे मुट्ठी भर ही शेष है ।
दौड़ता था इन रगों में खून जो ,
क्या किसी को परवाह नही अब,
था मिट्टी में अपनी मिलता सुकून जो ।
खो गया है पूर्व देखो पश्चिमो के भेष में ।
अब नही बस्ता है भारत देखो मेरे देश मे ।
वे संताने भरत की जैसे सब मर ही गयी ।
जो अड़ सकेगा एक वचन पे मुट्ठी भर ही शेष है ।
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