Sanskriti

क्या खत्म ही हो जायेगा वो , 
दौड़ता था इन रगों में खून जो ,

क्या किसी को परवाह नही अब, 
था मिट्टी में अपनी मिलता सुकून जो ।

खो गया है पूर्व देखो पश्चिमो के भेष में ।
अब नही बस्ता है भारत देखो मेरे देश मे ।

वे संताने भरत की जैसे सब मर ही गयी ।
जो अड़ सकेगा एक वचन पे मुट्ठी भर ही शेष है ।

                                                    - नरेंद्र  लोधी 

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