Mai khud se bahar aya hun
टीस उठी है दिल मे एक और उसने मुझे जगाया है ।
में कुछ भी न कर पाया हूँ अभी उसने मुझे बताया है ।तड़प उठा हूँ खुद की ही करतूतों से में कहा मुझे ले आया हूँ ।
हिसाब लगाने बैठा हूँ पहले क्या जोडूं कितना कुछ खो आया हूँ ।
समय बहुत खो बैठा हूँ , उनकी उम्मीद खो आया हूँ ।
दिल टूट चुका है ,किसी की यादों में रो आया हूँ ।
यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ ।
पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ ।
पापा ने कैसे छोटी सी खेती से मेरी लाखों की फीस भरी।
जेवर गिरबी रख दिये माँ ने जब मांगी मेने कोई चीज बड़ी ।
पता नहीं अब भी वो माँ के जेवर उठ पाए या डूब गए ।
पापा की उम्मीदें जिन्दा है या अरमान वो सारे टूट गए ।
में बस डीग्री लेकर लौटा हूँ कोई जॉब नहीं में पाया हूँ ।
में बुरा नही एवरेज रहा, पर अब्बल तो न आया हूँ ।
यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ ।
पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ ।
B Tech किया M Tech किया , GATE दिया लाखों यूँ बर्बाद किया ।
बच निकला हर बुरी आदत से, पर दिल के matter ने बर्बाद किया ।
तप तो रहा ही था में काश थोड़ी सी लौ और बड़ा पाता ।
काश में अर्जुन बन पाता और कोई द्रोण मुझे पढ़ा पाता ।
B Tech किया M Tech किया , GATE दिया लाखों यूँ बर्बाद किया ।
बच निकला हर बुरी आदत से, पर दिल के matter ने बर्बाद किया ।
तप तो रहा ही था में काश थोड़ी सी लौ और बड़ा पाता ।
काश में अर्जुन बन पाता और कोई द्रोण मुझे पढ़ा पाता ।
अब भी में टूटा नही हूँ देर हुई है मगर बहुत पीछे छूटा नही हूँ।
फिर खुदसे से मिलना चाहता हूँ अपने आपसे इतना रूठा नही हूँ ।
में उनकी उम्मीदें , उनके सपने पूरे करना चाहता हूँ ।
में किसी के इश्क़ में नही अपने माँ बाप पे मरना चाहता हूँ ।
में डूबा था पर अब उम्मीदों के मोती लेकर आया हूँ ।
नाउम्मीदी के घोर अंधेरे से में ज्योति लेकर आया हूँ ।
यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ ।
पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ ।
- नरेन्द्र लोधी
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