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Showing posts from 2020

Mahatma Gandhi...

एक महात्मा चला स्वप्न ले “आजादी” बिन शस्त्र लिए । दुर्गम था पथ , पर जुड़ा कारवाँ, एक सहारे को लाठी, कंधे पर खादी सा वस्त्र लिए। एक महात्मा चला स्वप्न ले, “आजादी” बिन शस्त्र लिए । त्याग, तपस्या और अहिंसा,  दुश्मन नतमस्तक हो मान गया। हे संत तेरे चरखे की ताकत, विश्व ये सारा जान गया।   हुई सफल सब साधना तेरी, जो मुक्ति के प्रयत्न किए। एक महात्मा चला स्वप्न ले, “आजादी” बिन शस्त्र लिए ।                            -नरेन्द्र लोधी

BHAGWAT GEETA PART-1

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                                         “अर्जुन ” हे केशव ये सब तो अपने ही संबंधी है में इनसे न लड़ पाऊँगा। जिनके चरणों में शीश रखा , जिन्हें गले लगाया कैसे उनपे वाण चलाऊंगा । ये तात , गुरु , मामा , अनुज , जेष्ठ , हे केशव क्या में इनका वध कर पाऊँगा । शिथिल हुआ रोम - रोम गाण्डीव नहीं उठता , गोविंद में युद्ध नही कर पाऊँगा ।   अपने ही कुल का कैसे नाश करूँ। कुल नाशी होने का कैसे पाप करूँ । जब सब सनातन कुल धर्म नष्ट हो जाएगा । ऐसा पापी युगों तक नरक वास को पाएगा ।   मैं निहत्था रण में मारा जाऊं किंतु ये पाप नहीं कर पाउँगा। कैसे कुल नाशी हो जाऊं , हे गोविंद मैं युद्ध नही कर पाउँगा।                                        “ कृष्ण” धर्म आस लगाए देख   रहा तो मोह शोक से लिपट रहा। इन दुर्बल कायरता के भाव में तेरा पुरुषार्थ सिमट रहा   । नपुंसकता त्याग पार्थ , यश कीर्ति नष्ट हो जायेगा। हे पुरुष श्रेष्ठ इस शोक से स्वर्ग नही तू पायेगा।   त्याग हृदय की दुर्बलता , मत धर्म मार्ग अवरुद्ध करो । शोक त्याग गाण्डीव उठा ,   हे कौन्तेय   युद्ध करो ।                

Guru (Shikshak)

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Bharat Desh

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  https://youtu.be/eR6yoMe4Dw8 https://www.facebook.com/wordsbuzzing/ #Narendralodhi

na koi krishna sa sakha hai

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    ये कलयुगी मित्रता है न कोई कृष्ण सा सखा है  न कोई कर्ण सा सखा है ।   सभी हैं स्वार्थी  न सुदामा रहा कोई  न कृष्ण सा सारथी । न वचन का मूल्य है  न धर्म ही निभा सका है । न कोई कृष्ण सा सखा है  न कोई कर्ण सा सखा है ।                                                   - नरेन्द्र लोधी

Kaal Chakra

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काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । जो पाप और अधर्म मानव से धरा पर बढ़ गए। ये उसी का है सबक  ताले धरा पर पड़ गए । मानो मनुष्य की गति को आज रोके बो खड़ा है। हर तरफ देखो तबाही ,कुदरत का विनाशक रो पड़ा है। न पवन दूषित है उतनी , न धुआं अब घोर है । न सड़कों पर विष  उगलती गाड़ियां ,  न जहाजों का गगन में शोर है। काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है । शीतल हुई छाती धरा की अब कुछ साफ उसकी सांस है। घाव थोड़े से भरे अब, कुछ लौटी उसकी आस है । देखो हटे बादल धुँए के शहरों से तारे दिखाई देते है अब  जो न आते थे किनारे ,वे जीव सारे दिखाई देते है अब । खो गयी थी पक्षियों की जो चहक आधुनिक इस दौर में अब सुनाई देती है , ताजगी के संग रोज नई भोर में  काल के इस चक्र का आया ये कैसा दौर है । रोग बन कर सबक आया ये कोई और है ।                                                  - नरेन्द्र लोधी

Sanskriti

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क्या खत्म ही हो जायेगा वो ,  दौड़ता था इन रगों में खून जो , क्या किसी को परवाह नही अब,  था मिट्टी में अपनी मिलता सुकून जो । खो गया है पूर्व देखो पश्चिमो के भेष में । अब नही बस्ता है भारत देखो मेरे देश मे । वे संताने भरत की जैसे सब मर ही गयी । जो अड़ सकेगा एक वचन पे मुट्ठी भर ही शेष है ।                                                                 - नरेंद्र  लोधी 

ZINDGI...

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हर शख्स की एक अलग कहानी है ! कहीं  बचपन , कहीं बुढ़ापा और कहीं ये जवानी है ! क्या खूब है इस बदलती हुई दुनिया की तस्वीर , और क्या खूब इस वक़्त की रवानी है ! बदलती रही रंगत यहाँ हमारी , कैसे  गुजरा है  वक़्त और बदलती हुई कहानी है ! कोई हुआ दीवाना तो कोई यहाँ दीवानी है ! जिंदगी न जाने कैसे यहाँ बितानी है ! मेने देखी है जिंदगी भी किसी के नाम करके , पर वो  भी लगती झूठी कोई कहानी है ! न रुका कोई हम में सब वहता हुआ सा पानी है ! हम रहे किनारों की तरह और सब लगे मौज की रवानी है ! सोचा है आज मेने बीता है बचपन गोद में जिसकी , उसी के नाम ये मेरी ये जवानी है !                                                            -नरेन्द्र लोधी

Mai khud se bahar aya hun

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टीस उठी है दिल मे एक और उसने मुझे जगाया है । में कुछ भी न कर पाया हूँ अभी उसने मुझे बताया है । तड़प उठा हूँ खुद की ही करतूतों से में कहा मुझे ले आया हूँ । हिसाब लगाने बैठा हूँ पहले क्या जोडूं कितना कुछ खो आया हूँ । समय बहुत खो बैठा हूँ , उनकी उम्मीद खो आया हूँ । दिल टूट चुका है ,किसी की यादों में रो आया हूँ । यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ । पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ । पापा ने कैसे छोटी सी खेती से मेरी लाखों की फीस भरी। जेवर गिरबी रख दिये माँ ने जब मांगी मेने कोई चीज बड़ी । पता नहीं अब भी वो माँ के जेवर उठ पाए या डूब गए । पापा की उम्मीदें जिन्दा है या अरमान वो सारे टूट गए । में बस डीग्री लेकर लौटा हूँ कोई जॉब नहीं में पाया हूँ । में बुरा नही एवरेज रहा, पर अब्बल तो न आया हूँ । यूँ जीवन कितना बीत गया सोच बहुत पछताया हूँ । पर सच कहूँ तो आज में खुद से बाहर आया हूँ । B Tech किया M Tech किया , GATE दिया लाखों यूँ बर्बाद किया । बच निकला हर बुरी आदत से, पर दिल के matter ने बर्बाद किया ।

Ek Tarfa Mohabbat Ki Bat Hai....

न उसकी शिकायत कर रहा हूँ में ! न खुद की बकालत कर रहा हूँ में ! करीब मुझे वो आने नही देंगे , पर फिर भी उसकी हिफाजत कर रहा हूँ में ! उसकी हर राह की सजावट कर रहा हूँ ! अपने गम को ढक कर ख़ुशी की दिखावट कर रहा हूँ में ! साथ हूँ में उसके हर पल , कभी सोचे न वो की उसकी खिलाफत कर रहा हूँ में ! कैसे मोहब्बत में उसकी जल रहा हूँ में ! धड़कने रुकी हैं पर चल रहा हूँ में ! न छूटे हंसी लवों से न अश्क वहा पाऊँ   एक एक  पल मर रहा हूँ में !

Veerta

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हम भारत माँ के वीर सिपाही , निडर निरंतर रण में डटे रहें। कंधों पे शीश भले न हो , पर कदम धरा पे जमे रहें। रुधिर हृदय से बहता हो ,   वस्त्र लहू में सने रहें। पर शस्त्र हाथ से न छूटे , शत्रु रण में डरे रहें। और जब तक शत्रु अंतिम न मिट जाए । प्राण देह में बने रहें शीश कटा जब देखेगा , सीमा पार तिरंगा झूम उठा। तब तक काल तुम्हें भी है रुकना , यम प्रतीक्षा में खड़े रहें।                                                                  -नरेन्द्र लोधी

Kya Tumhe Maloom Hai

क्या तुम्हें मालूम है हालात मेरे दिल के , तुम्हे पता है तुम्हारे जाने के बाद का आलम । तुमने सायद देखा नही होगा मेरा उदास चेहरा, तुम्हे वादा याद तो होगा, अब भी वो उम्मीद है कायम । कहा था तुमने कुछ नही बदलेगा, कुछ रस्में है बस निभानी है । तुम जैसे हो वैसे रहना अपनी हर एक बात कहते रहना।, कुछ फॉर्मेलिटीज है लाइफ में पूरी करने दे , कोनसी ज़िंदगी ऐंसे बितानी है । क्या तुमने ये सब झूठ कहा , और सच है तो तुम कब लौटोगे । तीन साल दो महीने पांच दिन गुजर गए , अब बोलो न तुम कब लौटोगे । क्या तुमने महसूस किया अपनी बढ़ती दूरी को , फोन उठा कर देखो बात बहुत कम होती है । तुमने सायद ध्यान दिया हो , तुम जब गुड नाईट कहदो अब ऐसी रात बहुत कम होती है । तुमसे जब मिलने की ख्वाहिश की , तुमने बिन सोचे इनकार किया । नया बहाना हर बार रहा , शर्तें सामने रखदी तुमने जब मेने कुछ इजहार किया । तुम इतने गहरे क्यों उत्तर गए उन किरदारों में , तुम तो बस यूं ही अभिनय करना चाहते थे । तुम्हे क्या हुआ ,कुछ भूल गए , तुम साथ मेरे जीना मरना चाहते थे । पूछो खुदसे से एक बार जरा , क्या अब भी याद तुम्हे में

Kya Tumhe Maloom Hai || love poem || Poetry by Narendra Lodhi || NARENDR...

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Befikre

एक बार फिर चलो बेफिक्र सी जिंदगी जी लें । क्लास में लंच और कैंटीन की चाय पी लें । चलो फिर उस बस को पकड़ें । दोस्तों के लिए ड्राइवर से झगड़ें । फिर पहले वाली फिक्र करें । हर बात में उनका जिक्र करें । फिर वो रेशु छोटी हो जाये । खुशबू पहले सी मोटी हो जाये । लम्बे बालों वाला जल होगा। अभिषेक का कब वो चाय पिलाने वाला कल होगा । ढके हुए चेहरे वाला , शिव फिर बस में नाचेगा । टीटू का वो सीधा - साधा वाला गाना बाजेगा । ढीली सी तबियत वाली दीपा आयेगी । याचु फिरसे आसिम की जिम जायगी । मोनी जल्दी कर सबको चलना है । तुझे मिस BMCT  भी  बनना है । अब ये काला कहाँ छूट गया । क्या इसका चस्मा फिरसे टूट गया । गोपाल याद है , हर बर्थ डे वहीं मनाना है । ढूंढो अपनी स्कूटी संबोधि भी तो जाना है । चलो फिर से 50 फुल्की वाली शर्त लगाते है । सलामतपुर के ठेले पे फिर ककड़ी खाते है । फिर पुराने   camera से फ़ोटो खीचेंगे । Sms वाली चैटिंग से दिन बीतेंगे। कुछ खींचा - तानी कर लेंगे हम। थोड़ी मस्ती थोड़ा लड़ लेंगे हम । फिर कुछ दर्द बांटे कुछ आँसू पीलें ।

Aaj mai khud se bahar aya hun || Poetry by Narendra Lodhi || NARENDRA L...

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हे परमेश्वर

मानव पे आयी है विपदा हे परमेश्वर अरज सुनो । हो अभेद्य जो इस विपदा से ऐसा कोई कवच बुनों ।। बूढ़े बालक नर नारी वो हर जन पर अभिशाप बना । बंदी बनी है मानवता और हर घर कारावास बना ।। हे जग पालक  हे  सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो । तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो ।। एक अप्रकट अनजाने शत्रु से कैसे हम संग्राम करें । लड़ते मरते कितने और शबो से हम शमशान भरें।। भय की ज्वाला जलती मन में कब तुम इसे बुझाओगे । तपती आंखे देख रही है तुम रक्षक बन कब आओगे ।। हे - अनंत , हे - अनादि अब तो इस संकट का अंत करो । निर्भय हों हम , लो शरण हमे , कोई दिव्य प्रबंध करो ।। हे  जग पालक  हे  सृजनकर्ता अब संकट को दूर करो । तुम बनो राम या कृष्ण या नारायण का रूप धरो । निज निज वो विस्तार करे उसका अंत समझ न आता है । मनुज मनुज से भय खाये यही वो शत्रु चाहता है ।। इससे पहले और अधर्म बड़े , प्रभु धर्म पताका फेहराओ । इस वहती दूषित काली आंधी को तुम ही पूर्णता ठहराओ ।। व्याकुल भूखे बेघर लोगों को अब निष्कंटक मार्ग मिले । निकलें प्रलयंकर घोर अंधेरे से हमे नया प्रकाश मि